24 अक्टूबर को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला नई दिल्ली में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर रहे थे, तभी कश्मीर घाटी के पर्यटन स्थल गुलमर्ग में आतंकियों ने सेना के काफिले को घेरा और अंधाधुंध फायरिंग की। इस फायरिंग में सेना के दो जवान तथा सेना के मददगार दो युवकों की मृत्यु हो गई। पिछले नौ दिनों में आतंकियों का यह चौथा हमला रहा। कहा जा सकता है कि एक सप्ताह पहले जब उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तभी से जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाएं लगातार हो रही है। इससे जम्मू कश्मीर में निर्माण कार्य कर रहे गैर कश्मीरियों में दहशत का माहौल है। यदि गैर कश्मीरी आतंकियों से डरकर लौट गए तो जम्मू कश्मीर में चल रहे विकास कार्यों पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। 24 अक्टूबर को उमर अब्दुल्ला ने पीएम मोदी से आग्रह किया कि जम्मू कश्मीर को जल्द से जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाया जाए। उमर ने यह आग्रह तब किया है जब राज्य सरकार के प्रस्ताव को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने स्वीकार कर लिया है। अब पूर्ण राज्य का दर्जा देने का निर्णय केंद्र सरकार को करना है। कहा जा सकता है कि पूर्ण राज्य का दर्जा देने के मामले में उमर सरकार ने पहली सीढ़ी पार कर ली है। यह सही है कि यदि केंद्र सरकार का रुख सकारात्मक नहीं होता तो उपराज्यपाल मनोज सिन्हा दो दिन में ही उमर सरकार के प्रस्ताव को मंजूर नहीं करते। राज्यपालों के पास राज्य सरकारों के प्रस्ताव अनेक वर्षों तक पड़े रहते हैं, लेकिन उमर सरकार ने पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने का जो प्रस्ताव पास किया, उसे उपराज्यपाल ने दो दिन में ही स्वीकार कर लिया। सब जानते हैं कि उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पोते और लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे फारुख अब्दुल्ला के बेटे हैं। आजादी के बाद जम्मू कश्मीर पर ज्यादातर शासन अब्दुल्ला खानदान ने ही किया है। यह भी सब जानते हैं कि शेख अब्दुल्ला ने जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को आंखे दिखाने की कोशिश की तो शेख अब्दुल्ला को जेल जाना पड़ा। अब्दुल्ला खानदान की कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद ही कश्मीर घाटी पर सुरक्षाबलों का नियंत्रण हो पाया है। मौजूदा समय में जम्मू कश्मीर की कानून व्यवस्था उपराज्यपाल के अधीन है। यदि जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया तो फिर कानून व्यवस्था राज्य सरकार यानी उमर अब्दुल्ला के अधीन हो जाएगी। तब सुरक्षा बलों की तैनाती भी राज्य सरकार की सलाह पर ही होगी। पीएम मोदी को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि अब्दुल्ला खानदान के शासन में ही कश्मीर घाटी से चार लाख हिंदुओं को प्रताड़ित कर भगा दिया गया। आज कश्मीर घाटी हिंदू विहीन हो गई है। पीएम मोदी को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि अब्दुल्ला खानदान भरोसे के काबिल नहीं है। जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर वाहवाही लूटना बेमानी है। यह सही है कि केंद्र शासित प्रदेश होने के बाद भी जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाएं हो रही है। लेकिन इन घटनाओं की तुलना अनुच्छेद 370 के हटने से पहले के समय से की जाए तो अंतर साफ नजर आता है। 2019 से पहले तो सुरक्षाबलों पर खुले आम पत्थरबाजी होती थी।
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