तूं आपै ही विचार, तुझ बिन क्यों रहूं। मेरे और न दूजा कोइ, दुख किसको कहूं॥ मीत हमारा सोइ, आर्दै जे पिया। मुझे मिलावै कोइ, वै जीवन जीया॥ तेरे नैन दिखाइ, जीऊं जिस आसरे। सो धण जीवै क्यों, नहीं पिव जिस पास रे॥ पिंजरा मांहीं प्राण, तुझ बिन जायसी। जन दादू मांगै मान, कब घर आयसी॥ संतप्रवर श्रीदादू दयाल जी महाराज कहते है कि हे भगवान् ! आप ही विचार कीजिये कि मैं आपके बिना कैसे सुखी रह सकता हूं ? आपके सिवा मेरा दुःख हरने वाला कोई दूसरा है भी नहीं, जिससे मेरा दुःख उसको सुनाऊँ। जो संसार के आदि अन्त में रहता है, वह ही मेरा परम मित्र है, वह ही मेरे जीवन का आधार है। ऐसा महात्मा जो मुझे प्रभु से मिला दे, ऐसा कोई हो तो मैं उसकी बहुत बड़ी दया मानूँगी। हे प्रभो! आप अपने नेत्र, मुख दिखलाइये, जिससे मेरे जीवन का कुछ आधार बन जाय। जिस स्त्री का पति यदि उसके पास न रहे तो उस नारी का जीवन कैसे सुखी हो सकता है ? ऐसे ही आपके दर्शनों के बिना मेरा जीवन भी सुखी नहीं हो सकता, हो सकता है कि जीवन ही न रहे, क्योंकि यह मेरा प्राणपक्षी तो बाहर जाने के लिये जल्दी कर रहा है। इसलिये मैं आपसे प्रार्थना कर रही हूं कि आप मेरे हृदय घर में कब पधारेंगे ? भक्तिरसायन में- आपको ऋषि-महर्षियों ने हंस बतलाया है। अत: आपका मेरे मानसरोवर में विहार करने का जन्म-सिद्ध अधिकार है। परन्तु मैं समझती हूं कि आप हमारे शुभमानस में आने के लिये लज्जित हो रहे हैं कारण कि मैं काला कैसे आऊं, क्योंकि आप कृष्ण स्वरूप हैं। अत: इस लज्जा को त्याग दो और मन-मानसरोवर में पधारो।
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