जिले के गौशाला संचालक बेसहारा गौवंश के लिए कितने संवेदनशील

AYUSH ANTIMA
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जिले में गौवंश को लेकर अनगिनत गौशालाएं संचालित है लेकिन गौवंश लाचार व बेसहारा गलियों में कूड़ा-करकट व लठ्ठ खाने को मजबूर हैं। इस बेसहारा गौवंश को लेकर झुंझुनूं की जिला पर्यावरण सुधार समिति के तत्वावधान में जिला प्रशासन के सानिध्य में एक मुहीम चलाई है कि इन बेसहारा गौवंश को रेडियम युक्त बेल्ट बांधे जायेगे, जिससे रात्रि में दुर्घटना को रोका जा सके। समिति की इस मुहीम की प्रशंसा होनी चाहिए क्योंकि उनकी इस मुहीम से इस बात का पता जरूर लगेगा कि कितने गौवंश बेसहारा घूम रहे है। प्रशासन को व गौशालाओं को क्या यह बेसहारा गौवंश नहीं दिखाई देता कि इनको भी आसियाना देकर पुण्य कमाया जा सके। इन गौशालाओं के संचालकों ने स्वत: संज्ञान लेकर तो इन बेसहारा गौवंश‌ को सहारा देने की जरूरत नहीं समझी बल्कि गौ रक्षा दल व हिन्दू क्रान्ति दल के सदस्यों द्वारा पुलिस प्रशासन की मदद से तस्करों से मुक्त करवाए गये गौवंश को भी गौशाला संचालक मना करे तो उन गौशाला संचालकों की गौ भक्ति के प्रति कथित असंवेदनशीलता उजागर होती है। गौशालाएं सरकारी अनुदान व जिले के प्रवासी उदारमना भामाशाहों का भरपूर आर्थिक सहयोग मिलता है क्योंकि जिले के बहुत महानुभाव है, जो जिले की गौशालाओं को समय समय पर आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। परसों की एक घटना, जिसमें पिलानी के समीप गौ रक्षादल व हिन्दू क्रान्ति सेना के पदाधिकारियों ने दबिस देकर करीब 45 देशी गायों को तस्करों से मुक्त करवाने के बाद स्थानीय गौशाला में लाये तो संचालक ने मना कर दिया। काफी बहस के बाद उन बेसहारा गौवंश को गौशाला में लिया गया, जिसका विडियो वायरल हो रहा है। इस बात को लेकर जब झुंझुनूं जिला गौ सेवा समिति के अध्यक्ष व प्रवक्ता से दूरभाष पर बात की गई तो उन्होंने भी इस प्रकरण को दुर्भाग्य पूर्ण बताया है। 
आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) अपने पत्रकारिता के मूल्यों को जीवंत रखते हुए गौवंश की दुर्दशा पर स्थानीय प्रशासन व गौशाला संचालकों का ध्यान आकृष्ट करने के साथ ही अपने लेखों द्वारा जनता की अदालत में भी रखने का काम किया है। उसकी उस मुहीम पर परसों के प्रकरण ने मुहर लगा दी है कि गौशाला संचालक गौवंश के प्रति कितने संवेदनशील है।

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