दलित वर्ग की चिंताओं को दलित साहित्य में उठाने की जरूरत: आफरीदी

AYUSH ANTIMA
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जयपुर : डॉ.अंबेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष और पूर्व डीजी पुलिस डॉ.जसवंत सम्पतराम ने कहा है कि सरकारी नौकरियों मे घटते अवसर और बढ़ते निजीकरण के दौर में दलितों का आरक्षण निष्प्रभावी होते जाने से संकट पैदा हो गया है। ऐसे में दलित साहित्य में यह दर्द उभरकर आना चाहिए। वे आज यहाँ राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ और सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में दलित वैचारिकी और सृजन संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आज भी दलित उत्पीड़न का दौर चल रहा है। दलित स्त्रियों और बच्चियों की सुरक्षा चिंताजनक है। दलित उत्पीड़न के प्रकरण न्यायालयों में ख़ारिज हो जाते हैँ। राजकीय सेवाओं में आरक्षित एससी एसटी के रिक्त पद नहीं भरे जाते। उन्होने कहा कि यदि राजकीय सेवाओं से हटकर बात करें तो देहात के कृषि व्यवसाय में दलितों का योगदान था। सीमांत और लघु किसान थे तो उनकी हैसियत बनती थी। उनकी जमीन को दूसरे खरीद नहीं सकते थे। अब उनकी जमीन पर अतिक्रमण हो रहे हैं, दूसरी ओर परिवार बड़े हो रहे हैं। खेती के लिए खाद बीज महंगा हो गया है, पानी का अभाव है, सरकारी नौकरियों की खत्म होती जा रही है। नई पीढ़ी को लेकर चिंता बनी हुई है, इन मुद्दों को साहित्य में उठाने चाहिए। प्रलेस के कार्यकारी अध्यक्ष फारूक आफरीदी ने कहा कि दलित, आदिवासी, स्त्री और हाशिये के लोगों को एक ही श्रेणी में रखकर उनकी चिंताओं को दलित साहित्य में उठाने की जरूरत है। रास्ता लंबा है और इसे अनवरत जारी रखना होगा, ऐसे समाजों को ऊपर उठाने और उनमें चेतना जगाने की ज़िम्मेदारी लेखकों की है। प्रलेस की महासचिव और संयोजक रजनी मोरवाल ने कहा कि लेखक संघ स्त्रियॉं, दलितों के हितों के लिए सजग है और इसके लिए संगोष्ठियों और सम्मेलनों का आयोजन कर रहा है। लेखक अपनी कहानियों, कविता और उपन्यासों के माध्यम से रचनात्मक योगदान कर रहे है। आदिवासी समाज को लेकर जल्दी ही एक सम्मेलन किया जाएगा। आज की गोष्ठी में भी प्रदेश और देशभर से 20 दलित लेखक शामिल हुए हैं। संगोष्ठी में दलित कथाकार रत्नकुमार सांभरिया ने कहा कि उनके दलित साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों मे शोध हो रहा है और 40 से अधिक विश्वविद्यालयों मे पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जा रहा है। दलित विशेषज्ञ डॉ.ताराराम मेघवंशी, डॉ.अनीता वर्मा, डॉ.वर्षा वर्मा ने कथा, कहानी, उपन्यास और कविता के माध्यम से दलितों के कारुणिक जीवन, उन पर होने वाले उत्पीड़न को साहित्य के माध्यम से सामने लाने के प्रयासों की जानकारी दी। दूसरे सत्र में युवा कवि और आलोचक प्रेमचंद गांधी के संयोजन में दलित कविता गोष्ठी हुई, जिसकी अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि गोविंद माथुर ने कहा कि दलित लेखन में भोगा हुआ यथार्थ और प्रामाणिकताएँ होती है। भदोही से आये युवा कवि बच्चा लाल उन्मेष ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता “कौन जात हो भाई...” का वाचन किया | जीएल वर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.हेतु भारद्वाज, डॉ.हरिराम मीना, डॉ.अजय अनुरागी, मंगल मोरवाल सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन और युवा उपस्थित थे।

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