बीकानेर (हेम शर्मा): पीबीएम अस्पताल का अधीक्षक होना चिकित्सा व्यवस्थाओं में विडंबनाओं से भरा पद है। इससे पहले भी कई अधीक्षक व्यवस्थाओं से हारकर इस्तीफा दे चुके हैं। पीबीएम, एसपी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध संभाग और पश्चिमी राजस्थान का बड़ा अस्पताल है। यहां पंजाब, हरियाणा के लोग भी इलाज के लिए आते है। आउटडोर और इनडोर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में बीमार इलाज लेते हैं। सबका इलाज जिस चिकित्सा व्यवस्था के तहत होता है। इसमें कई कमियां, विसंगतियां, दलाली और इसकी आड में चिकित्सा सेवाओं में कॉकस और राजनीतिक हस्तक्षेप ने व्यवस्था को एक तरह से विफल बना दिया है। सरकारी डाक्टरों के घरों में चल रहे अस्पताल भी एक बड़ा कारक है। कई सीनियर डॉक्टर आउटडोर में नहीं बैठते, यह मुद्दा उठता रहा है। अधीक्षक इन सीनियर्स का कुछ नहीं कर सकता। नर्सिंग स्टाफ, तकनीकी कार्मिक से लेकर सफाई के ठेकेदार तक को व्यवस्था माकूल रखने के लिए अधीक्षक के पास ज्यादा कुछ करने के अधिकार नहीं है। यूनियनबाजी, राजनीतिक संरक्षण भी एक बड़ा फैक्टर है। जनता और राजनेताओं का अधीक्षक बेहतर व्यवस्था बनाए, इसके खातिर कोई सहयोग, समर्थन नहीं है। अधीक्षक को हर तरह से दवाब में ही काम करना होता है। विभाग के उच्च अधिकारी भी व्यवस्था में सहयोगी होने की बजाय खामियां गिनाने में ही रहते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अधीक्षक जिम्मेदार नहीं है। उसकी इन्हीं हालातों में बेहतर व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी तो है ही, इसके लिए स्किल होना नितांत आवश्यक है। सत्तापक्ष के विधायक जेठानंद व्यास ने दुर्घटना के बाद अपनी गाड़ी में लाए घायल बच्चियों की देखभाल करना उनकी संवेदनशीलता है, यह उनका मानवीय पक्ष सराहनीय है। विधायक जेठानंद का अधीक्षक पीके सेनी के फोन नहीं उठाने से विधायक ने जो बवाल मचाया, वो दरअसल उनकी अपरिपक्वता है। विधायक ने सत्ता के गुरूर में आकर जो व्यवहार किया वह निंदनीय है। स्वास्थ्य सचिव को शिकायत करना दरअसल उनकी नासमझी ही है। विधायक को धैर्य से पहले पूरी व्यवस्था की तहकीकात करनी चाहिए थी। फोन नहीं उठाया, यह विधायक होने का अहंकार बोलता है। खुद कहते हैं हमारी सरकार और सत्तापक्ष के विधायक का फोन नहीं उठाया फिर जनता के साथ कैसा व्यवहार रहेगा। विधायक का यह आकलन सही नहीं है। सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की जिम्मेदारी है कि वे जनता को रिस्पांस करें। अधीक्षक का फोन नहीं उठाना, कोई अच्छा व्यवहार नहीं है। फिर भी विधायक को सत्ता का इतना गुरूर रखना शोभा नहीं देता। विधायक के इस व्यवहार से अधीक्षक ने इस्तीफा देकर सत्ता के गुरूर पर तमाचा ही जड़ा है। अब विधायक नया अधीक्षक लगाकर अस्पताल की व्यवस्था सुधार लें तो सत्ता का गुरूर जनहित का सबब बन जाएगा। अन्यथा तो अफसर और डाक्टर नेताओं की हाजरी भरकर जनता की अनदेखी करते ही हैं। यह पूरा घटनाक्रम व्यवस्था की विसंगति, नेताओं और जिम्मेदार पद के अधिकारी के बीच व्यवहार की निकृष्टता की एक मिसाल है।
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