धार्मिक उपदेश: धर्म कर्म

AYUSH ANTIMA
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(आयुष अंतिमा नेटवर्क)



राम कृपा करि होहु दयाला, दरसन देहु करहु प्रतिपाला॥ 
बालक दूध न देई माता, तो वह क्यों कर जीवै विधाता॥ गुण औगुण हरि कछु न बिचारै, अन्तर हेति प्रीति करि पालै॥
अपणौं जाणि करै प्रतिपाला, नैन निकट उर धरै गोपाला॥ दादू कहै नहीं बस मेरा, तू माता मैं बालक तेरा।। अर्थात हे राम ! कृपा करके मेरे ऊपर दयालु हो जाइये। दर्शन देकर मेरी रक्षा कीजिये। यदि माता अपने बच्चे को दूध न पिलावे तो उस बच्चे का जीवन कैसे हो सकता है ? वैसे ही हे प्रभो! आप ही कहिये, आपके बिना मेरा जीवन कैसे हो सकेगा ? जैसे माता अपने बच्चे का गुण अवगुण नहीं देखती किन्तु अपने हृदय में दया धारण करके प्रीति से अपने बच्चे को पालती है और अपना समझकर उसकी रक्षा भी करती है, सदा अपने नेत्रों के पास ही रखती है। वैसे ही हे नाथ ! आप ही मेरी माता है। मैं आप का शिशु हूँ। आपके आगे मेरा कोई बल नहीं है, क्योंकि मैं दुर्बल हूँ। अत: कृपा करें और मेरी हर प्रकार से रक्षा कीजिये। लिखा है कि आप ही मेरे माता, पिता, भाई, बन्धु, सखा, धन, विद्या आदि सब कुछ आप ही है। भवानी अष्टक में आदिगुरु शङ्कराचार्य लिख रहे है कि-मेरा इस संसार में कोई माता- पिता, बन्धु-बान्धव व पुत्र-पुत्री, नौकर-स्वामी, स्त्री, विद्या आदि कुछ भी नहीं है, किन्तु आप ही मेरी गति हैं।
महेश्वरतंत्र में भी लिखा है कि-
हे नाथ ! आप ही मेरे माता-पिता, बन्धु-भाई हैं। विद्या, कुल, धन, शील भी आप ही हैं।

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