दिल्ली: इतिहास को उठाकर देखें तो भारतीय लोकतंत्र में गिनती की महिला मुख्यमंत्री आज तक बनाई गई। गुजरात में आनंदीबेन पटेल, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, राजस्थान में वसुंधरा राजे के अलावा दिल्ली में रेखा गुप्ता को चौथी महिला मुख्यमंत्री मिली। इससे पहले सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित, आम आदमी पार्टी की मुख्यमंत्री आतिशी और अब भाजपा की रेखा गुप्ता ने महिला मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। यहां बता दें कि दिल्ली में महिला मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने देश के आधे वोटर या यूं कहे कि महिला वोटर को अपने पक्ष में कर लिया।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने के बाद मुख्यमंत्री की दौड़ में कयास लगाए जा रहे थे कि आम आदमी पार्टी के सर्वे सर्वा अरविंद केजरीवाल को और शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित को हराने वाले प्रवेश वर्मा मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे लेकिन क्योंकि प्रवेश वर्मा के पिता बाहरी दिल्ली से भाजपा के न केवल विधायक रहे बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री भी रहे तो भाजपा परिवारवाद का आरोप भी नहीं झेलना चाहती थी, जिसके चलते प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री शायद नहीं बनाया गया। इसके अलावा दिल्ली के पुराने कार्यकर्ता दुष्यंत गौतम, विजेंद्र गुप्ता के नाम की खासी चर्चा रही। महिला प्रतिनिधित्व के रूप में मीनाक्षी लेखी, बांसुरी स्वराज का नाम भी चर्चाओं में रहा। बाद में यह चर्चा भी रही कि किसी पूर्वांचल के चेहरे को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, जिसमें मनोज तिवारी का नाम भी माना जा रहा था लेकिन जिस प्रकार राजस्थान में एक आम कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया और भजन लाल शर्मा को यह जिम्मेवारी सौंपी गई, मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया, इसी प्रकार दिल्ली में भी एक नए चेहरे को दिल्ली की सत्ता सौंपकर भाजपा ने महिला प्रतिनिधित्व को तरजीह दी। राजनीतिक जानकारों की माने तो देश की आधी आबादी महिलाओं की है, जिससे कि उनको प्रतिनिधित्व मिला है, वहीं आने वाले बिहार में चुनाव के मद्देनजर भी यह फैसला किया गया। वास्तविकता यह है कि नरेंद्र मोदी ने दूरगामी सोच के चलते अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए राह आसान बनाने के चलते यह फैसला किया है। हालांकि यह फैसला संघ के द्वारा किया गया माना जा रहा है। इसके साथ यह भी पता चल सकेगा कि एक पुरुष मुख्यमंत्री के मुकाबले एक महिला जब इस पद की जिम्मेवारी को निभाएगी तो वह राज्य की जनता के लिए कितनी संजीदा रहेगी। बहरहाल, अब देखना होगा कि पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार के मुकाबले भाजपा की यह सरकार दिल्ली का कितना विकास कर पाती है और साथ ही दिल्ली के वोटरों से किए गए वादों को कितना निभा पाएगी, यह देखने का विषय रहेगा।