जियरा ! राम भजन कर लीजे। साहिब लेखा माँगेगा रे, उत्तर कैसे दीजे॥ आगे जाइ पछतावन लागो, पल पल यहु तन छीजे। तातैं जिय समझाइ कहूँ रे, सुकृत अब तैं कीजे॥१॥ राम जपत जम काल न लागे, संग रहै जन जीजे।दादू दास भजन कर लीजे, हरि जी की रास रमीजे॥२॥ हे मन ! जब तक तेरा यह शरीर स्वस्थ है तब तक श्री राम को भज ले। वृद्धावस्था में भजन नहीं बनेगा। फिर तो तुझे अन्त में पश्चाताप ही करना पड़ेगा। जब तेरा हिसाब होगा, तब भजन किये बिना परमात्मा को क्या जवाब देगा क्योंकि तेरी गर्भ में रहते हुए प्रभु से भजन करने की प्रतिज्ञा की हुई है। इसलिये हे मन ! मैं तेरे को उद्बोधन कर रहा हूँ कि अभी से ही भजन में लग जा अन्यथा तू आगे दुःखी होगा। राम नाम को जपने वाला तो कभी यमराज से भी नहीं डरता क्योंकि वह भजन द्वारा अद्वैत ब्रह्म में सदा लीन रहता है। तू भी भजन के द्वारा उस प्रभु को प्राप्त करले और उसी की शरण में जाकर वहां पर राम के आनन्द का अनुभव कर।
लिखा है कि पारमार्थिक अद्वैत और भजन के लिये द्वैत, वह इस तरह की जो भक्ति है वह तो सैकड़ों मुक्तियों से भी श्रेष्ठ है क्योंकि ऐसी द्वैतभाव से की हुई भक्ति तो मुक्ति की देने वाली है। निराकरण रूप से प्रत्येक चैतन्याभिन्न परब्रह्म के साक्षात्कार के पहले द्वैत मोह के लिये ही है, परन्तु भक्ति के लिये जो भावित द्वैत बुद्धि है, वह तो अद्वैत से भी सुन्दर है, क्योंकि मोक्ष प्राप्त होता है।