जयपुर (योगेश शर्मा): गणगौर पूजन के तहत महिलाओं ने यहां घरों में ईसर-गणगौर के बिंदोरे निकाले है। इस अवसर पर विधिवत पूजा अर्चना कर पारंपरिक मंगल गीत गाए। संगीता शर्मा, मीनू खंडेलवाल, इंद्रा गुर्जर, संतोष शर्मा, ममता खंडेलवाल, अंकिता छीपा और भारती छीपा ने बताया कि होलिका दहन की राख से बनी पिंडलियों की पूजा करने के बाद आठवें दिन एकत्र होकर कन्याओं ने मिट्टी से ईसर-गणगौर सहित कान्हू जी, भाईया, मालन, ढोलन, सोदरा, आदि की प्रतिमाएं तैयार की। पूजन करने वाली महिलाएं प्रतिदिन शाम के समय प्रतिमाओं को बड़े थाल में सजाकर गीत गाती हुई घरों में जाकर बिंदोरा निकालती है। इसी तरह सांगानेर क्षेत्र के महावीर नगर रामद्वारा कॉलोनी में महिलाओं ने गणगौर पूजन के बाद बिंदोरा का पूजन किया। यह रस्म पारंपरिक तौर पर शादी के समय दूल्हा-दुल्हन का बिंदौरा निकालने से जुड़ी हुई बताते है, इसे लेकर महिलाएं उत्साहित नजर आई। इस अवसर पर महिलाओं ने 'ईसरलाल बीरा चुनरी रंगाई रे', 'ईसर प्यारा जैपुर जाइजो जी आंवता लाईजो तारां री चुनरी' सहित विभिन्न प्रचलित लोक गीत गाए और बिंदोरे वाले घर मे गई।
*यह है परम्परा*
सुनीता, खुशबू, दक्षता शर्मा, सुनीता शर्मा, पिंकी शाहू, ममता एवं अन्य महिलाओ ने बताया कि परंपरा अनुसार सबसे पहले ईसर गणगौर की आरती की जाती है। उसके बाद भोग लगाकर प्रसाद का वितरण किया जाता है। इस दौरान बिंदौरा निकालने वाले परिवार की ओर से साथ आई महिलाओं को जलपान करवाकर आवभगत की जाती है। पूजन कार्यक्रम के बाद खुशियां मनाती महिलाएं थाली में सजी प्रतिमाओं को पूजन स्थल पर वापस ले जाती है। सुबह पूजन और शाम को रोजाना अन्य घरों मे बिंदोरा निकालने का सिलसिला चैत्र मास के शुक्लपक्ष की दूज तक जारी रहता है। अंतिम दिन सवारी निकालकर नगर परिक्रमा के बाद गणगौर का विसर्जन होता है।